गुरुवार, 7 नवंबर 2013





" रद्दी कि टोकरी "
      जिंदगी एक रद्दी कि टोकरी है … 



जिंदगी एक रद्दी कि टोकरी है … 
कुछ अरमान फैंक दो... !
कुछ सपने फ़ैंक दो …!  
कुछ आंसू फैंक दो …! 
कुछ यांदे फैंक दो … !

कभी बचपन गुजर जाता है रोटियां सेकते हुए ..... 
कभी जवानी चली जाती है सपने देखते हुए .... 

फिर बुढ़ापा ही रह जाता है दस्तक देता हुआ.....
न ख़त्म होने वाला सिलसिला ……  
जहाँ न सपने रहते है ?
न अरमान ?
न उत्साह ?
न ख्याल ?

चार दिवारी में क़ैद हो जाते है ,
झुलस जाते है । 
फ़ना  हो जाते है । 

वो सपने जो जागती आँखों से देखे थे कभी मैने
अपने छोटे से घर में तुम्हारी बांहे के धेरे में बेसुध, 
मन मयूर सा नाचने को बेताब, 
पैरो में धुंधरू बाँध ,
मतवाली चाल ,
पिया के गीत गाने को बेकरार ---। 

क्या तुम होते तो मेरे साथ नाच पाते ?
वो खूबसूरत शमा !
चारो और महक !
शहनाई कि मधुर ध्वनि ---
फूलो को अपनी अंजुमन में समेटे मैं  तुम्हारे धर आती --
डोली में सवार ??????

उफ्फ्फ्फ्फ्फ्फ्फ्फ्फ्फ्फ्फ्फ्फ्फ्फ़ 
फिर सपने देखने लगी 
हा हा हा हा हा हा 

फिर असहाय अपने टूटे -फूटे धर में अस्तित्वहीन पड़ी हूँ --- 
 पर होठो पर एक विजेता मुस्कान लिए हुए 
जो पल मैंने अभी -अभी जिआ है उसकी स्मृति मात्र से मैं आज बहुत खुश हूँ   ----