" रद्दी कि टोकरी "
जिंदगी एक रद्दी कि टोकरी है …
जिंदगी एक रद्दी कि टोकरी है …
कुछ अरमान फैंक दो... !
कुछ सपने फ़ैंक दो …!
कुछ आंसू फैंक दो …!
कुछ यांदे फैंक दो … !
कभी बचपन गुजर जाता है रोटियां सेकते हुए .....
कभी जवानी चली जाती है सपने देखते हुए ....
फिर बुढ़ापा ही रह जाता है दस्तक देता हुआ.....
न ख़त्म होने वाला सिलसिला ……
जहाँ न सपने रहते है ?
न अरमान ?
न उत्साह ?
न ख्याल ?
चार दिवारी में क़ैद हो जाते है ,
झुलस जाते है ।
फ़ना हो जाते है ।
वो सपने जो जागती आँखों से देखे थे कभी मैने
अपने छोटे से घर में तुम्हारी बांहे के धेरे में बेसुध,
मन मयूर सा नाचने को बेताब,
पैरो में धुंधरू बाँध ,
मतवाली चाल ,
पिया के गीत गाने को बेकरार ---।
क्या तुम होते तो मेरे साथ नाच पाते ?
वो खूबसूरत शमा !
चारो और महक !
शहनाई कि मधुर ध्वनि ---
फूलो को अपनी अंजुमन में समेटे मैं तुम्हारे धर आती --
डोली में सवार ??????
उफ्फ्फ्फ्फ्फ्फ्फ्फ्फ्फ्फ्फ्फ् फ्फ्फ़
फिर सपने देखने लगी
हा हा हा हा हा हा
फिर असहाय अपने टूटे -फूटे धर में अस्तित्वहीन पड़ी हूँ ---
पर होठो पर एक विजेता मुस्कान लिए हुए
जो पल मैंने अभी -अभी जिआ है उसकी स्मृति मात्र से मैं आज बहुत खुश हूँ ----